Posts

भीखमंगे पर रिसर्च

"ओ, हेलो...!!" लड़की करीब आकर "अच्छा तो तुम मंदिर भी आते हो ?" "क्यों नहीं आना चाहिए ?" "नहीं ऐसा तो नहीं है लेकिन मैं यह सोच कर आश्चर्य चकित हूं कि आखिर तुम जैसा सनकी आदमी मंदिर आकर भगवान से मांगता क्या होगा ?" "तुम्हें क्या लगता है ?" "लगना क्या है ? कुछ उल्टा पुल्टा डिमांड होगा और साथ में शिकायत की पोटली..." "गलत" "मैं कुछ समझी नहीं।" "अच्छा यह बताओ कि मंदिर के बाहर जो लोग भीख मांग रहे हैं, उसके पीछे क्या कारण हो सकता है ?" "क्योंकि वह लाचार हैं।" "फिर गलत।" "मतलब" "मतलब यह कि जिस दिन आम आदमी पूरी तरह भीख देना बंद कर देगा, उस दिन के बाद कोई भी कितना भी लाचार हो जाए, वह भीख नहीं मांगेगा और उससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि तुम इन भीखमंगों को कितना भी पैसा क्यों नहीं दे दो, यह लोग भीख मांगना नहीं छोड़ेंगे।" "ओ..., तो अब तुम भीखमंगे पर रिसर्च करने लगे हो। इसलिए मंदिर आए हो..." "नहीं, मैं मंदिर आकर उन सम्मानित भिखमंगों की झलक देखने आता हूं, जो

२. मजबूर और मजबूत

*मजबूर और मजबूत* ✍🏽 *बिपिन कुमार चौधरी* हेलो!! "मिस्टर चौधरी।" "जी बोलिए..।" "बड़ी ऊंची छलांग मार रहे हो।" "मतलब" "लेटर राइटिंग से सीधे व्यंग्य लेखक बन गए।" "बड़ी सख्त निगरानी कर रही मेरी, मैडम!!" "ओ हेलो..., सुमन के पास ढेरों काम हैं।" "तो सुमन नाम है आपका।" "शालिनी सुमन, एक हिडेन प्रोजेक्ट पर काम कर रही हूं।" "मैंने पूछा क्या ? आप कुछ भी करो।" "यार तुम वाकई गंवार हो, वह भी देशी। अगर सीधे मुंह थोड़ी देर बात कर लोगे तो तुम्हारे इस दो टके के थोबड़े का भाव नहीं गिर जायेगा।" "एक्सक्यूज मी मैडम, अपनी हद में रहो।" "नहीं तो क्या करोगे। गालियां दोगे.." लड़का चुप रहता है। "अरे तो दो गालियां, मैं भी तो देखूं दो टके के थोबड़े वाले युवा एंग्री रिपोर्टर का असली रूप..." "देखो मुझे डिस्टर्ब मत करो।" "आखिर तुम समझते क्या हो खुद को ?" दोनों के बीच इस गर्मागर्म बहस ने अचानक सभी का ध्यान उस कोने की ओर खींच लिया, जहां दोनों एक दूसरे बिना मतलब झग

३. दुनियां छोड़ जाती है ...*

*दुनियां छोड़ जाती है ...* ✍🏽 *बिपिन कुमार चौधरी* "क्या लिख रहे हो ?" "वही जो पढ़ने लिखने वाले लोगों को पसंद नहीं है।" "तो फिर किसके लिए लिख रहे हो ?" "उनके लिए, जिन्हें पढ़ने लिखने की फुरसत नहीं है।" "तब लिख कर फायदा क्या होगा ?" "इन लोगों को आईना दिखाने के लिए.." लड़की बीच में रोकते हुए "कुछ समझी नहीं ??" "अगर पचास हजार की तनख्वाह उठाने वाला आदमी पांच हजार के लिए मजदूरी करने वाले से रिश्वत मांगे तो समझने के लिए बचता क्या है ?" "तो वह कंप्लेन क्यों नहीं करता है ?" "किसके पास करे ?" "सीनियर अधिकारी के पास, पुलिस स्टेशन में, कोर्ट में...। क्या देश में कानून खत्म हो गया है ? "कभी पुलिस स्टेशन गई हो ?" "हां, कई बार ?" "मान लो तुम्हारे साथ रेप हो जाए।" "ए मिस्टर!! जुबान संभालो!!" "तुम्हें गुस्सा भी आता है ?" "क्या तुम्हें शर्म नहीं आती है ?"  " मुझे क्यों शर्म आए ?" "ऐसी बेहूदी बातें करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे

४.अरमानों का बोझ

*अरमानों का बोझ* ✍🏽 *बिपिन कुमार चौधरी* "ऑटो.."  ऑटो वाला रुकते हुए "जी मैडम" "बोरिंग रोड चलोगे" "जी बैठिए" बैठते ही "अरे चौधरी तू" "पीछा कर रही हो।" "अबे जा, आइने में चेहरा देखा है।" "इतनी फुरसत किसे है ?" "बात तो सही है, पूरी दुनियां की यही प्राब्लम है।" "मैं समझा नहीं।" "हां जी, कहां से समझोगे, गांव के गंवार जो ठहरे।" "यार तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है।" "यही कि इस दुनियां में हर किसी को दूसरे की कमी दिखती है लेकिन अपनी नहीं।" "अभी यह बोलने का मतलब।" "पूरी दुनियां को लिख लिख कर आइना दिखाने की ख्वाइश रखने वाले अक्लमंद आदमी के पास भी खुद अपना चेहरा देखने का वक्त नहीं है।" लड़का गुस्से से तिलमिला जाता है लेकिन इसके बाद दोनों बहुत देर तक चुप रहते हैं।  कुछ देर बाद लड़का अचानक एक छोटे उम्र के बच्चे की ओर इशारा करते हुए कहता है "उस बच्चे को देख रही हो।" "हां, वही जो भीख मांग रहा है।" "क्या गलती है उसकी ?" "घर

भाग १ .लालच का दवाब

  * लालच का दवाब ?? (कहानी) * ✍🏽 * बिपिन कुमार चौधरी * हेलो! क्या मैं यहां बैठ सकती हूं... गांधी मैदान मेरे बाप का नहीं है। लड़की बैठते हुए, क्या नाम है तुम्हारा.. नाम में क्या रखा है ?  काम की बात कीजिए। काफी एटीट्यूड है। मैडम गांव का गंवार हूं, देशी गालियां सह नहीं पाओगी। उफ, चलो बताओ, काम क्या करते हो ? खबरें तलाशता हूं ? शक्ल से तो नहीं लगता ? खबर तलाशने के लिए शक्ल नहीं अक्ल की जरूरत होती है। मतलब खुद को अक्लमंद समझते हो ? नहीं, क्योंकि ऐसा दुनियां को नहीं लगता। कैसी खबरें लिखते हो ? नफरत वाली खबरें। ऐसी खबर जो सड़ी गली सिस्टम और बईमान नेताओं, हाकीमों और बाबुओं की काली करतूत सामने लाकर लोगों को उनसे नफरत करने को मजबूर कर दे। अफसोस ऐसी खबरें अखबार के संपादकों को पसंद नहीं आती है। फिर भी काफी चर्चे हैं तुम्हारे... पहली बार लड़के ने सर उठा कर उस लड़की को देखा था। अत्यंत ही साधारण कपड़े में गांधी मैदान के किनारे कड़कड़ाती धूप में एक पत्थर पर बैठा वह लड़का उसकी इस जवाब से खुश होने की जगह काफी चौंक गया था। क्या नाम है तुम्हारा ? नाम में क्या रखा है, सर ! काम की बात क